
रायपुर, छत्तीसगढ़-: अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षण आयोग छत्तीसगढ़ प्रदेश की एक उच्च स्तरीय टीम ने कल ग्राम सुंगेरा (तहसील तिल्दा, जिला रायपुर) का दौरा किया। यह दौरा ग्रामवासियों को होने वाली पानी की कमी की गंभीरता को देखते हुए किया गया।
इस प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व आयोग के प्रदेश अध्यक्ष गुरदीप सिंह व प्रदेश महासचिव प्रदुमन शर्मा द्वारा किया गया। यह दौरा शब्बीर अहमद, महासचिव, पूर्वी भारत ज़ोन, अज़ीम खान , जनसंपर्क अधिकारी, पूर्वी भारत ज़ोन, अफ़रोज़ ख्वाजा ,प्रदेश मीडिया प्रभारी के मार्गदर्शन में किया गया. टीम ने गांव में जाकर स्थानीय नागरिकों, पंचायत प्रतिनिधियों एवं सरपंच से मुलाकात की और समस्या की वास्तविकता का निरीक्षण किया।
क्या है मामला? – ग्राम सुंगेरा के सरपंच श्री तारणदास साहू एवं ग्रामवासियों ने आयोग की टीम को बताया कि पूरे गांव व इसके साथ ही आसपास के सात अन्य गांवों की आजीविका, खेती, पशुपालन और निस्तारी जल की आवश्यकता के लिए यह नहर एकमात्र स्रोत है एक स्थानीय नहर, जो वर्षों से इन गांवों की जीवनरेखा रही है।
ग्रामवासियों के अनुसार, हाल ही में क्षेत्र में स्थित एक निजी स्टील एवं पावर प्लांट द्वारा सरकारी मदद से इस नहर का जल उपयोग किये जाने की योजना बना रहा है, वह भी ग्राम पंचायत से बिना किसी प्रकार की पूर्व सहमति (NOC) लिए। इतना ही नहीं, प्रशासन द्वारा ग्राम की शासकीय भूमि जिसका रकबा लगभग 2.5 एकड़ है उक्त भूमि भी प्लांट को देने की कोशिश की जा रही है, जिसके लिए किसी प्रकार की ग्रामसभा या पारदर्शी प्रक्रिया नहीं अपनाई गई है।
ग्रामीणों का आरोप- ग्रामवासियों का कहना है कि प्रशासन और पुलिस बल के सहयोग से यह कार्य बलपूर्वक किया जा रहा है।
किसी भी अधिकारी ने अब तक लिखित आदेश या वैध दस्तावेज नहीं दिखाए हैं, जबकि ग्रामीणों ने पटवारी, तहसीलदार, एस.पी., कलेक्टर, यहाँ तक कि मंत्री तक अपनी बात पहुंचाई है। लगातार दबाव बना कर गांव के संसाधनों को प्लांट को हस्तांतरित करने का प्रयास हो रहा है, जिससे ग्रामीणों की आजीविका और अस्तित्व पर संकट उत्पन्न हो सकता है।
आयोग की प्रतिक्रिया – अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षण आयोग ने मामले को बेहद गंभीर मानते हुए, संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों से तत्काल जवाबदेही तय करने और वैधानिक प्रक्रिया की जांच की मांग की है। आयोग ने कहा कि “ग्रामवासियों के जीवन, खेती और मौलिक अधिकारों पर जबरन हमला न केवल संविधान के खिलाफ है, बल्कि यह मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन भी है। जल जैसे आवश्यक संसाधन पर पहला अधिकार स्थानीय समुदाय का है।”
आयोग का यह भी कहना है कि यदि प्रशासन ने ग्रामीणों की बातों की जल्द सुनवाई नहीं की तो आयोग कानूनी रास्तों का सहारा लेकर ग्रामीणों के अधिकारों की रक्षा करेगा।
ग्रामीणों की मांगें- ग्राम पंचायत की अनुमति के बिना नहर का जल किसी औद्योगिक इकाई को न दिया जाए।
प्लांट को दी जा रही ग्राम भूमि का आवंटन तत्काल रोका जाए।
सभी संबंधित दस्तावेजों को सार्वजनिक किया जाए।
ग्रामीणों पर बनाए जा रहे दबाव को समाप्त किया जाए।
शासन से इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच करवाई जाए।
निष्कर्ष: यह मामला सामाजिक न्याय, जल अधिकार और ग्राम स्वायत्तता से जुड़ा हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षण आयोग ग्रामवासियों के साथ खड़ा है और भविष्य में भी संवैधानिक और वैधानिक तरीके से ग्रामीणों की लड़ाई में सहयोग करता रहेगा।